Sunday, October 23, 2011

आज घर याद आ रहा है...


आज घर याद आ रहा है...
पापा का डांटना याद आ रहा है...
माँ का बनाया पराठा याद आ रहा है...
चाचा का साथ याद आ रहा है...
भाभी का दुलार याद आ रहा है..
घर की सुबह याद आ रही है...
चाय के साथ रोटी आ रही है...
वहाँ देखने को मिलता था भोर..
यहाँ सुनने को मिलता है शोर...
आज घर याद आ रहा है...

पापा का सुबह सुबह उठाना 
माँ का बार बार दुकान भेजना
घर में हमेशा मेहमानों का आना
और उनके लिए निकली मिठाई 
में से अपने लिए भी हाथ मारना
आज घर याद आ रहा है...

रविवार का इंतजार करना...
सुबह देर से उठना...
घर में सबका रहना...
आज का नया प्लान होना...
बाहर गेट पर दोस्तों का आना...
खेलने जाने के लिए पापा को मनाना
आज घर याद आ रहा है...

परीक्षा का रिजल्ट आना...
रिजल्ट के बारे में न बताना ..
माँ का बार बार पूछना...
पापा का वो समझाना...
ठीक से अब पढेंगे ये वादा करना...
रात में सोने तक दिल में जोश रहना...
सुबह उठते ही अलार्म बंद करके फिर सो जाना....
आज घर याद आ रहा है...

BHAVESH KUMAR PANDEY 'विनय'©2011



Wednesday, September 7, 2011

दिल्ली में ३ महीने में दूसरा धमाका - कौन है जिम्मेदार


घायल को अस्पताल के अन्दर ले जाता स्वास्थ्यकर्मी

आज १०:१५ बजे सुबह दिल्ली हाई कोर्ट के बाहर गेट नंबर ५ पर एक बड़ा धमाका हुआ जिसकी आवाज ५०० मीटर दूर इंडिया गेट से भी आगे तक सुनाई दिया. इस धमाके की वजह से 4X4 का गड्ढा हो गया और इसमें अमोनियम नाइट्रेट के इस्तेमाल होने की आशंका बताई जा रही है . इस विष्फोट में ४ किलो विष्फोटक इस्तेमाल होने की बात बताई गयी. इस दुर्घटना में ११ लोग अपनी जान गँवा बैठे और ५२ लोग घायल हुए.

अब बात आती है की इस घटना को अंजाम कैसे दिया गया. अन्ना हजारे जी के आन्दोलन से लेकर अभी तक दिल्ली पुलिस को यही लग रहा था की अन्ना जी से बड़ी बड़ी मुसीबत और क्या होगी? और दिल्ली पुलिस दिल्लीवासियों को अन्ना जी से बचाने के इंतज़ाम में ही लगी रही... और अभी थोडा आराम ही हो रहा था की ये पता नहीं आतंकी कहा से आ गए.... 

VIP लोगो के सुरक्षा के लिए तो Z , Y  और पता नहीं कौन कौन सी श्रेणियों की व्यवस्था होती रहती है... लेकिन आम आदमी की चिंता किसे है?

अभी अडवाणी जी ने अपने लोकसभा में दिए हुए व्यक्तव्य में कहा की ये दुर्घटना संसद के काफी नजदीक हुयी इसलिए यह दुखद है..... और चिदम्बरम जी ने कहा की वो कार्यवाही जरुर करेंगे और शाम बैठक भी बुलाएँगे... और ये पूरी तरह आतंकवादी हमला था.... मनमोहन जी ने कहा है कि हमें आज एक साथ खड़े होकर आतंकवाद के खिलाफ ये लड़ाई लड़नी होगी..

यह सोचने वाली बात है कि ११ सितम्बर २००१ की दुर्घटना के १० साल पुरे ही होने वाले हैं और ये घटना उपहार स्वरुप भारतवासियों को भेंट में मिल गयी.... आश्चर्य वाली बात है की जब गृह मंत्रालय ने २५ जुलाई को दिल्ली पुलिस को अलर्ट का नोटिस दिया था तो क्यों दिल्ली पुलिस की सुरक्षा नाकाम रही.... यहाँ तक की कोई CCTV  कैमरा भी वह मौजूद नहीं है...

अडवानी जी ने आज कहा की हमें सदन की कार्यवाही स्थगित कर देनी चहिये.... बड़ा दुःख हुआ हमें ये जानकार की एक ब्लास्ट से लोकतंत्र का मंदिर संसद भवन बंद हो सकता है... मैं ये कहता हु की आज तो समय है की अगर रात के १२ बजे तक भी चर्चा कर सकते हैं की कैसे देश की सुरक्षा और व्यवस्थित की जा सकती है..... अभी सरकार ने एलान भी किया है की सभी को ४ लाख रुपये का मुआवजा दिया जाएगा.... क्या यही काफी है.... की जब धमाके हो तो मुआवजा दे दिया जाय... आज हमें चाहिए की अपनी सुरक्षा एजेंसियों को और चुस्त बनाने की व्यवस्था होनी चाहिए.....

हे हमारी सरकार.... आम आदमी के बारे में थोड़ी चिंता कर लो.... हम आपके आभारी रहेंगे....

- भावेश कुमार पाण्डेय "विनय"

you can also read this on http://bhaveshvinay.jagranjunction.com/2011/09/07/%E0%A4%A6%E0%A4%

Sunday, August 28, 2011

I think its my First INITIATIVE

Hindustan Dainik Front Page 29th August 2011..

Saturday, August 20, 2011

Who is ANNA HAZARE?


He once contemplated suicide and even wrote a two-page essay on why he wanted to end his life. Anna Hazare was not driven to such a pass by circumstances. He wanted to live no more because he was frustrated with life and wanted an answer to the purpose of human existence.

The story goes that one day at the New Delhi Railway Station, he chanced upon a book on Swami Vivekananda. Drawn by Vivekananda's photograph, he is quoted as saying that he read the book and found his answer - that the motive of his life lay in service to his fellow humans.

Today, Anna Hazare is the face of India's fight against corruption. He has taken that fight to the corridors of power and challenged the government at the highest level. People, the common man and well-known personalities alike, are supporting him in the hundreds swelling to the thousands.

For Anna Hazare, it is another battle. And he has fought quite a few, Including some as a soldier for 15 years in Indian Army. He enlisted after the 1962 Indo-China war when the government exhorted young men to join the Army.

In 1978, he took voluntary retirement from the 9th Maratha Battalion and returned home to Ralegaon Siddhi, a village in Maharashtra's drought-prone Ahmadnagar. He was 39 years old.

He found farmers back home struggling for survival and their suffering would prompt him to pioneer rainwater conservation that put his little hamlet on the international map as a model village.

The villagers revere him. Thakaram Raut, a school teacher in Ralegaon Siddhi says, "Thanks to Anna's agitations, we got a school, we got electricity, we got development schemes for farmers.''

Anna Hazare's fight against corruption began here. He fought first against corruption that was blocking growth in rural India. His organization - the Bhrashtachar Virodhi Jan Andolan (People's movement against Corruption). His tool of protest - hunger strikes. And his prime target - politicians.

Maharashtra stalwarts like Sharad Pawar and Bal Thackeray have often called his style of agitation nothing short of "blackmail".

But his weapon is potent. In 1995-96, he forced the Sena-BJP government in Maharashtra to drop two corrupt Cabinet Ministers. In 2003, he forced the Congress-Nationalist Congress Party (NCP) state government to set up an investigation against four ministers. In April this year, four days of fasting brought thousands of people out in support of his crusade against corruption. They also made the government realise it could not be dismissive about Anna Hazare and his mass appeal.

His relationship with the UPA government continues to be uneasy. The truce of April was short-lived. An exercise to set up a joint committee made up of equal numbers of government representatives and civil society activists, including Anna Hazare came to naught when the two sides failed to agree and drafted two different Lok Pal Bills. The government has brought its version in Parliament and Team Anna is livid.

The Gandhian is soldiering on. From one battle to another in his war against corruption. He fought from the front to have Right to Information (RTI) implemented. He is now fighting for the implementation of the Jan Lokpal Bill, the anti-corruption bill drafted by his team of crusaders.

This year, more than 30 years after Anna Hazare started his crusade, as the 74-year-old plans a second hunger strike in Delhi against large-scale corruption at the national level. Nothing really has changed except the scale of his battle.

Tuesday, August 16, 2011

मौका है आपके पास : भावेश पाण्डेय 'विनय'



अगर आपको इस बात का दुःख हो की आप हमारे देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में अपना कोई योगदान नहीं दे पाए , तो परेशान न होइए क्यूंकि महात्मा गाँधी, भगत सिंह और सभी लोगो के संघर्ष से जो ये देश को हम आजाद समझ बैठे वो फिर से गुलाम होता दिख रहा है, और आपके पास ये मौका है की आप इस बार आजादी के लड़ाई में अन्ना जी का साथ दे इस से आपके आने वाली पीढ़ी का ही लाभ होगा, नहीं तो ये गाँधी परिवार आपको खा जायेगा और डकार भी नहीं लेगा. वैसे तो आपके पास कोई विपक्षी पार्टी भी ऐसी नहीं है जो इस सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस का विरोध अछे तरीके से कर सकने में आपकी मदद कर सके क्यूंकि वो भी नपुंसक होते दिख रहे हैं.... तो ४७ की लड़ाई की तरह ही अगर आज फिर आम जनमानस आवाज नहीं उठाएगा तो फिर ये आंधी यहीं शांत हो जायेगी... अगर आप चाहते हैं की आपकी आने वाली पीढ़ी आपको गालियाँ न दे तो कृपया करके शांत न बैठे.... कुत्ता भी अपने हक़ के लिए लड़ता है आप तो फिर भी इंसान हैं.... तो आज आपकी बारी है कुछ करने की..... नहीं तो ये सरका आपको जीने नहीं देगी... आपको आंकड़े देने की जरुरत नहीं की इन्होने कितना घोटाला कहा किया है... कितने अत्याचार कहा किये हैं.. आप कहीं से भी ये आंकड़े एकत्र कर सकते हैं... मेरा मकसद बस इतना है की आप आज शान्ति के साथ न बैठें... ऐसे अन्ना का बार जन्म नहीं होता.... अगर आपको इस आन्दोलन में जेल भी जाना पड़े तो दरिये मत... क्यूंकि हमें थोड़े कष्ट सहने ही पड़ेगे इस चुड़ैल सरकार को गद्दी से हटाने के लिए....

जय भारत

Saturday, July 30, 2011

मुस्कराइए कि हम इंसान हैं


मुल्ला नसीरुद्दीन को अरब के सुल्तान हमेशा अपने साथ रखते थे। नसीरुद्दीन की हाजिरजवाबी सुल्तान को बहुत भाती थी। एक बार सुल्तान का काफिला किसी रेगिस्तान से गुजर रहा था। उन्हें दूर से कोई अनजान कस्बा दिखाई दिया। कस्बे को देखकर सुल्तान ने नसीरुद्दीन से कहा, मुल्ला, चलो देखते हैं कि इस कस्बे में कितने लोग अपने सुल्तान को पहचानते हैं। तुम किसी को मेरा परिचय मत देना।

सुल्तान ने शाही कारवां बाहर ही रुकवा दिया और कस्बे में पैदल प्रवेश किया। सुल्तान को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि आने-जाने वालों में से किसी ने भी सुल्तान की तरफ ध्यान नहीं दिया, परंतु हर कोई मुल्ला को देखकर मुस्कुरा रहा था। सुल्तान चिढकर बोले, मुल्ला, मुझे यहां कोई नहीं जानता, परंतु तुम्हें तो सब पहचानते हैं। नसीरुद्दीन ने कहा, जहांपनाह, ये लोग मुझे भी नहीं पहचानते। सुल्तान ने हैरत से कहा, फिर ये तुम्हें देखकर मुस्कराए क्यों? मुल्ला नसीरुद्दीन ने बडे अदब से कहा, हुजूर, क्योंकि मैं इन्हें देखकर मुस्कराया।

यह छोटा-सा किस्सा मुस्कराहट की ताकत को बयां करता है। एक मुस्कराहट से हम दूसरे के होठों पर मुस्कराहट ला सकते हैं। अनजान को भी अपना बना सकते हैं। हंसना-मुस्कराना इंसान का प्राकृतिक स्वभाव है। नन्हा शिशु बिना किसी कारण के मुस्कराता है। उसकी हंसी निर्मल और स्वार्थहीन होती है। परंतु जैसे-जैसे शिशु, बालपन और किशोरावस्था की ओर बढता है, उसकी हंसी कम होती जाती है। युवावस्था आते-आते चेहरे पर तनाव जगह बनाने लगता है। फिर मुस्कान ईद का चांद बन जाती है।

एक शेर है-खुल के हंसना तो सबको आता है, लोग तरसते हैं इक बहाने को..। लोगों को वह बहाना ही नहीं मिल पाता, जिसकी वजह से वे हंस-मुस्करा पाएं। आजकल रोजी-रोटी के झमेलों में मध्यवर्ग इतना फंस गया है कि परिवार और मित्रों के संग हल्के-फुल्के क्षण कम होने लगे हैं। काम की अधिकता और समय सीमा वाले लक्ष्य, तनाव को बढावा देते हैं। लेकिन यदि इन तनावों में भी मुस्कराते रहें, तो तनाव को पराजित कर सकते हैं। संकटों के बीच मुस्कराहट को खींच लाया जाए, तो संकट की प्रवणता कम हो जाती है। जिन्होंने मुस्कराहट को आदत बना लिया है, उनके चेहरे देखकर ताजगी का अहसास होता है। ऐसा लगता है कि गर्म लू के थपेडों के बीच ठंडी हवा का झोंका आ गया हो। मुस्कराने वाले सकारात्मक सोच वाले होते हैं। वे परिस्थितियों से डरकर मुस्कराहट का साथ नहीं छोडते। वे यही शेर गुनगुनाते हैं- हुजूमे गम मेरी फितरत बदल नहीं सकते..क्योंकि मेरी आदत है मुस्कराने की..

ऐसे लोग जहां भी जाते हैं, भारी और बोझिल वातावरण को भी हल्का और विनोदपूर्ण बना देते हैं। उनका संदेश है कि अपनी मुस्कान से दुनिया के सारे दुख-दर्द मिटा डालो।

via- jagran

Wednesday, July 6, 2011

नेकी कर, दरिया में डाल

रात्रि के दस बज चुके थे। रीता अपने कार्यालय से निकली और बस में बैठ गई। आज घर लौटने में देर हो गई थी। मन के अंदर संशय घर कर गया था, गीता मन ही मन साहस जुटा रही थी। बगल की सीट पर एक अधेड आकर बैठ गया। एक घंटे में बस स्टॉप आ गया तो वह उतरी और तेज कदमों से चलने लगी।

एक किलोमीटर की दूरी पर गीता का आवास था। सडक सुनसान हो गई थी तभी उसे अहसास हुआ कि कोई उसका पीछा कर रहा है। वह तेज चलने लगी और उसकी धडकन बढ गई। मन में कई अनजान आशंकाएं घिर आई। एक मोड देखकर वह गलीनुमा रास्ते में घुस गई और चाल को और भी तेज कर दिया।

जो व्यक्ति पीछा कर रहा था, वह रमेश था। गांव से अपनी बेटी को पैसा देने आया था। रमेश के पांव पीछा करते करते कांपने लगे थे। डाक्टर ने उसे तेज चलने से मना किया था परंतु वह आज तेज चलने की ही कोशिश कर रहा था।

गीता को लगने लगा था कि आज कुछ बुरा होने वाला है। इस ठंड के मौसम में सडकें, गली, मुहल्ले सभी खाली थे और लूटपाट आम बात थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? सोचने लगी- मैं कमजोर नहीं हूं। मेरे पास भी मिर्ची का पाउडर है तभी तेज भागता हुआ वह उसके पास पहुंच ही गया। दमे का रोगी रमेश हांफ रहा था। गीता साहस करके रुक गई और रमेश कुछ बोलता कि वह चिल्लाने लगी-लडकी का पीछा करते शर्म नहीं आती है।

वह तन कर खडी हो गई। वह जता रही थी कि उसे किसी का डर नहीं। रमेश अवाक् था और कुछ कहने की स्थिति में नहीं था। रमेश ने वह फाइल जो गीता बस की सीट पर भूल आई थी, उसकी तरफ बढा दी। गीता ने फाइल ले ली और मिर्च का पाउडर उसके हाथों से गिर पडा। वह नि:शब्द थी, फाइल अनमोल थी, वह बोली- सॉरी अंकल!मेंशन नॉट।- कहते हुए रमेश अपने रास्ते हो लिया और भारी कदमों, गीता अपने रास्ते।


Source: Jagran

Sunday, May 15, 2011

10 Reasons Why You Should Always Be Happy


Never forget that "the more you put out, the more you receive". Some times appearances can be deceiving. If you appear to be in a mess of some sort, whether from a relationship or finances, don't let yourself get too lost. Remember that there is always a way out, even if it's something as simple as smiling and being grateful. You will only be able to get out of the mess if you truly believe that you can. Just remember the following 10 tips:

The world is happy when you are happy.

Smile at the world, and the world will smile back.

Be thankful that you are alive to experience this day, and you will be given more days to be thankful for.

The universe reflects back to you what you put out to the universe.

Be thankful for yesterday, and be happy today.

Be happy today, and prosper tomorrow.

You don't need money to be happy, only a smile.

Your dreams will come true, but first you must be true to yourself.

Share love and smiles with others, and the world will share with you in return.

Next time some thing bad happens, ask yourself "What did I do to contribute to this, and what can I do to make things better?" Apologize to the world for the part you played in messing things up, even if you don't feel it was your fault. Apologize to yourself as well, and then forgive yourself. Now all you can do is start all over again. There is no use having any bad feelings, for that will just dig you even deeper into the hole. Smile and be happy, and you will quickly find your way out.


Saturday, March 5, 2011

BANDRA SLUM UNDER MASSIVE FIRE

Its been approx 3 hours around 8:30 pm majorfire has broken out in a slum Garib Nagar near the Bandra railway station in Mumbai.Fire Started from Garib Nagar area located in Bandra East. Twenty six fire brigades and 10 water tankers are been used to estnguish the fire but no success could be gained . Beacuse of this massive fire all the trains from this route is been affected and as a precaution Bandra harbour line has been shut down.Trains on the Western lines are still running.
Due to fire 5 LPG cylinders also got bust. Fire is very near to Bandra Station . About 10 people are injuried and been Hospitalised.
Rubina, one of the stars in Danny Boyle’s 2008 Oscar-winning movie Slumdog Millionaire, stays in the Garib Nagar area. Her family is reportedly safe and has evacuated the hutment.

Its been approx 3 hours around 8:30 pm major fire has broken out in a slum Garib Nagar near the Bandra railway station in Mumbai.Fire Started from Garib Nagar area located in Bandra East. Twenty six fire brigades and 10 water tankers are been used to estnguish the fire but no success could be gained . Beacuse of this massive fire all the trains from this route is been affected and as a precaution Bandra harbour line has been shut down.Trains on the Western lines are still running.Due to fire 5 LPG cylinders also got bust. Fire is very near to Bandra Station . About 10 people are injuried and been Hospitalised.
Rubina, one of the stars in Danny Boyle’s 2008 Oscar-winning movie Slumdog Millionaire, stays in the Garib Nagar area. Her family is reportedly safe and has evacuated the hutment.

source: ndtv

Thursday, March 3, 2011

यादें याद आती हैं

रूठकर हमसे कहीं जब चले जाओगे तुम
ये सोचा था की इतने याद आओगे तुम

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वैसे तो तेरी ना में भी मैंने ढूंढ ली अपनी ख़ुशी
तू जो अगर हाँ कहे तो बात होगी और ही

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कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है

के ज़िन्दगी तेरी जुल्फों के नर्म छाओं में गुजरने पति तो शादाब हो भी सकती थी ये रंज - -गम की

स्याही जो दिल पे छाई है तेरे नज़र की शुवाओं में खो भी सकती थी मगर ये हो सका

मगर ये हो सका और अब ये आलम हैकी तू नहीं तेरा घूम तेरी जुस्तजू भी नहीं

गुज़र रही है कुछ इस तरह ज़िन्दगी जैसे इसे किसी के सहारे की आरजू भी नहीं

कोई राह मंजिल रौशनी का सुराग, भटक रही है अंधेरो में ज़िन्दगी मेरी

इन्ही अंधेरों में रह जाऊंगा कभी खो करमैं जानता हु मेरी हम नफ़ज़ मगर युही

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है






Monday, February 28, 2011

दूध का कर्ज

मिसेज शर्मा से पिछले माह के छह सौ साठ रुपये लेकर अपनी सफलता पर फूली नहीं समा रही रीता। थोडी सी होशियारी से हर माह इतने रुपये कमा रही है। शुद्ध दूध पाने की कीमत पर मिसेज शर्मा भी रीता का राज छिपाकर खुश है। लेकिन आज जैसे ही रीता रुपये रखने लगी उसके बारह वर्षीय पुत्र अजय ने उसे जैसे रंगे हाथों पकड लिया। पापा को बताऊंग! कहकर राहुल भागने लगा तो एक सौ का नोट रीता ने अजय के हाथ में पकडा दिया।

इस घटना के पाच साल बाद एक दिन रीता ने अजय को पापा की जेब से सौ का नोट निकालते देखा तो वह अवाक् रह गई।- आज आने दे अपने पापा को । की धमकी पर भी अजय निडर खडा रहा तो रीता की बेचैनी बढने लगी।

मम्मी, भूल गई क्या आप? पिछले पाच सालों में पापा से छिपाकर आपने कितना दूध अपने पडोसियों को बेचा है? अब आपको भी तो मेरी गलत आदतों पर परदा डालकर उस दूध का कर्ज चुकाना ही पडेगा.. ।

Saturday, January 29, 2011

Milegi Kamyabi ...................(Bhavesh Pandey)

नाविक को देने के लिए उनके पास पैसे नहीं होते थे। तैरकर नदी पार करते और स्कूल जाते थे। वे लगनशील थे। उनकी इसी ताकत ने उन्हें एक दिन भारत का प्रधानमंत्री बनाया था। ये थे सबके प्यारे जय जवान-जय किसान का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री जी। हम उनके जीवन से बहुत कुछ सीख सकते हैं।

1-स्वस्थ्य राजनीति :

राजनीति में आई साम्प्रदायिकता, जातीयता और भ्रष्टाचार लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं। युवा को उसी उम्मीदवार को वोट दें, जो शिक्षित और राष्ट्रभक्त होने के साथ क्षेत्र के विकास को प्राथमिकता देता हो। कहीं न कहीं बिहार के विधानसभा चुनावों से इस बात के संकेत मिलना शुरू हो गए हैं।

2-आर्थिक खुशहाली :

अमीर और गरीब के बीच की खाई को रोजगार से पाटा जा सकता है। बेरोजगार छोटा व्यापार करके स्थिति बदल सकते हैं। दिल्ली में जूस की दुकान चलाने वाले गुलशन कुमार तो याद होंगे, वे छोटी शुरुआत से ही कैसेट किंग बने थे।

3-महिलाएं आगे आएं :

हम एक महाशक्ति तभी बन सकते हैं, जब महिलाएं भी हर मुकाम पर पुरुषों के साथ खडी दिखाई दें। आज शायद ही कोई क्षेत्र ऐसा हो जहां महिलाओं की उपस्थिति न हो, लेकिन अभी यह प्रतिशत बहुत कम है। इसे बढाने के लिए हर क्षेत्र में काम कर रही शिक्षित महिलाओं को आगे आना होगा।

4-अच्छी शिक्षा :

शिक्षा न केवल व्यक्ति बल्कि पूरे समाज को बदलने का काम करती है। भारत की प्रगति के पीछे भी शिक्षा का प्रसार ही है। अभी कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां शिक्षा का स्तर संतोषजनक नहीं है। युवा शक्ति इन क्षेत्रों में जाकर लोगों को शिक्षित करने का काम कर सकती है। सरकार के साथ-साथ कई निजी संगठन भी इन क्षेत्रों में काम कर रहे हैं।

5-प्रतिभा संचयन :

अपने देश में योग्यता की कोई कमी नहीं है। यहां से पढकर निकले हजारों प्रोफेशनल्स आज दूसरे देशों में सराहनीय कार्य करके वहां की अर्थव्यवस्था में सहयोग कर रहे हैं। तकनीकी परीक्षण लेकर निकले युवाओं को राष्ट्रहित सर्वोपरि पर ध्यान देते हुए भारत में ही काम करना चाहिए। उन्हें धीरूभाई अंबानी की तरह सोचना चाहिए जो कभी विदेश में छोटी सी नौकरी करते थे लेकिन भारत आकर उन्होंने एक बडा एम्पायर खडा कर लिया था।

कामयाबी है क्या?

बहुत से लोगों के लिए कामयाबी का मतलब केवल जो चाहा, वह मिल गया है, लेकिन यह इसकी वास्तविक परिभाषा नहीं है। वास्तविकता में कामयाबी वह उपलब्धि है, जो कुछ पाने के बाद बहुत कुछ हासिल करने की प्रेरणा देती है। यह हमेशा आगे बढाने का काम करती है न केवल एक जगह स्थापित करने का।

ऐसी भविष्यवाणी की जाती रही है कि 21वीं सदी के पहले दशक में पूर्व का एक देश वैश्विक महाशक्ति बन जाएगा। देश का हर नागरिक जो वतन से मोहब्बत करता है, यह उपलब्धि भारत के हाथ लगते देखना चाहता है। यही कारण है कि गांव का भोला-भाला युवक भी अब सूचना और संचार प्रौद्योगिकी पर सहज पकड हासिल कर रहा है। आज युवा प्रतियोगी परीक्षा से लेकर चिकित्सा, इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी हर विधा में अपनी क्षमता का परचम लहरा रहे हैं। ग्रामीण हों या फिर शहरी, युवाओं ने अपने लक्ष्य से निगाह हटाने की गलती नहीं की है। आज इस अवसर पर हम कह सकते हैं कि अगर भारतीय युवाओं की रचनात्मक शक्तिका सही मूल्यांकन किया जाएगा तो निश्चित ही युवा भारत के युवा सपनों को नई उडान मिल जाएगी।

दायित्व नवजवानों का

अब इस सपने को हकीकत में बदलने का दायित्व नवजवानों का है, जिन्हें आगे आकर राष्ट्र की इस भावना को पूरा करने का दायित्व उठाना है। यह काम मुश्किल जरूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं। भारतीय युवाओं में निष्कपटता, अभिप्रेरणा, प्रतिबद्घता, ईमानदारी, ऊर्जा और आत्मप्रेरणा जैसे गुण जन्मजात मौजूद हैं। किसी भी राष्ट्र को आर्थिक एवं सैन्य रूप से मजबूत बनाने में इन्हीं की जरूरत होती है।

मार्गदर्शन की जरूरत

अनुभव का समावेश होने से युवा शक्ति की सफलता और भी पुख्ता हो जाती है। यह अनुभव ही उन्हें अपनी ऊर्जा को सही दिशा में लगाने के लिए प्रेरित करती है। यह काम उम्रदराज लोग कर सकते हैं। ऐसे लोगों की सही निष्कपट राय और मार्गदर्शन असंभव को भी संभव में बदल सकता है। इतिहास गवाह है कि किस तरह कौटिल्य (चाणक्य) ने उस समय विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक मगध (नंद वंश) का पतन किया था। चाणक्य से मिला अनुभव और ज्ञान ही चंद्रगुप्त की असली ताकत थी। इस शक्ति के माध्यम से ही चंद्रगुप्त ने विशाल मौर्य साम्राज्य का गठन किया था, जो उस समय विश्व का सर्वशक्तिशाली साम्राज्य था।

चुनौतियां हैं अपार

हमारे सामने जो काम है, वह कठिन है। अर्थतंत्र और राजतंत्र की समस्याओं सहित एक पूरी लंबी लिस्ट मौजूद है। यह समस्याएं ही सर्वशक्ति बनने के मार्ग की सबसे बडी बाधाएं हैं। इनकी जडें भी बहुत गहरी हैं। इन्हें पूर्ण निष्ठा के साथ समर्पण, अनुशासन और राष्ट्र के प्रति एकनिष्ठ होकर ही दूर किया जा सकता है। हमें अपने आप को इस तरह का बनाना होगा कि स्वार्थी और अनैतिक लोग हमारा गलत कार्यो में उपयोग न कर सकें और हम अपनी ऊर्जा का शत्प्रतिशत राष्ट्र निर्माण में ही व्यय करें।

समर्पण की भावना

हम लोगों के पास जो भी है, वह इस मुल्क की ही देन है। लेकिन क्या हमने कभी यह सोचा है कि अपने वतन को हम क्या दे रहे हैं? जिस दिन से जिस किसी के मन में यह विचार उठने लगेगा, उस दिन से ही वह राष्ट्र के लिए काम करना शुरू कर देगा। एक सुदृढ, संगठित और उन्नत भारत का निर्माण करने के लिए हम युवाओं को अपना सर्वस्व इस राष्ट्र को समर्पित करना है। इस गणतंत्र दिवस पर हमें कुछ ऐसी चीजों को ही अपनाने की जरूरत है, जो अपने विकास के साथ-साथ इस राष्ट्र के स्वाभिमान में भी विस्तार कर सके।

युवाओं की सोच

समय के साथ-साथ परिवर्तन का आना स्वाभाविक है और यह परिवर्तन आज के युवाओं की सोच में भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है। मानसिकता में आ रहा यह बदलाव इधर एक दशक से कुछ ज्यादा ही दिखाई दे रहा है। आज का युवा नौकरी में पैसे के साथ साथ स्टेबिलिटी की भी तलाश कर रहा है। वह अपनी इस तलाश को गवर्नमेंट सेक्टर से पूरी करना चाहता है, इसलिए वह बैंक, इंश्योरेंस, शिक्षा, सेना जैसे परंपरागत सरकारी क्षेत्रों की ओर रुख कर रहा है। अगर आप शारीरिक रूप से चुस्त और दुरुस्त हैं तो सेना और अर्धसैनिक बलों में भी काम करके कॅरियर के साथ-साथ राष्ट्र सेवा कर सकते हैं।

गणतंत्र पर संकल्प

अपने देश की आधी से ज्यादा आबादी की उम्र तीस वर्ष से कम है। अब लंबी अवधि तक देश में युवाओं का प्रतिनिधित्व रहना भी तय है अत: युवाओं की सोच के मायने और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं। काम की इस आपाधापी और नए मौकों की तलाश में हम युवाओं को अपनी नैतिकता भी बरकरार रखनी होगी। हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि जैसे-जैसे हम आगे बढ रहे हैं, वैसे-वैसे हम बुराइयों का शिकार भी हो रहे हैं। कई योजनाएं जमीन पर आने के पहले ही भ्रष्टाचार के पेट में समा जाती हैं। इस तरह के हालातों को बदलना होगा। हमें 62वें गणतंत्र के अवसर पर यह संकल्प लेना होगा कि इस तरह की सभी समस्याओं का हम डटकर मुकाबला करेंगे। यदि हम ऐसा संकल्प लेने और उसका पालन करने में सफल हो गए तो यह 62वां गणतंत्र ही सर्वशक्तिशाली भारत की आधारशिला बन जाएगा।

Source: Dainik Jagran

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