Thursday, September 13, 2012

हिंदी दिवस पर छोटी सी बात - भावेष विनय

आज मैं गया था फिर "हिंदी भवन" जहा हिंदी दिवस के के कार्यक्रम के विषय में मुझे जानकारी प्राप्त करनी थो तो पता चल गयी, बहुत ही गर्व से बताया गया की हम सिर्फ एक NGO हैं और और सरकारी संस्था नहीं हैं इसलिए हम कोई कार्यक्रम हिंदी दिवस पर नहीं कर रहे हैं। अच्छा लगा जानकार की हिंदी भवन में लोग इतने प्रतिबद्ध हैं। जैसा की हमेशा होता है अगर मैं दीनदयाल उपाध्याय मार्ग से पैदल गुजरता हु तो लक्ष्मण राव जी की चाय जरुरु पीता हूँ तो आज भी पिया, हिंदी भवन के तुरंत बगल में उनकी ताजा चाय पीने का आनंद ही कुछ और है। 


लगभग 60 वर्ष के लक्ष्मण राव जी महाराष्ट्र के अमरावती जिले के मूल निवासी हैं लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय से बी ए करने से लेकर वो अभी तक दिल्ली में ही रह रहे हैं। 1984 में इंदिरा गाँधी जी से लेकर 2009 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा अभी तक 25 से ज्यादा बार वो अपने लेखन कला के कारन पुरस्कृत हो चुके हैं। उनकी प्रमुख रचनाओ में रामदास, नर्मदा, रेनू, अभिव्यक्ति, परंपरा से जुडी भारतीय राजनीती, और नाटक "प्रधानमन्त्री" चर्चित रहे हैं। इनके उपन्यास "रामदास" पर कई बार थियेटर नाटक भी हो चुके हैं, शायद इसी लिए इनकी चाय में इतनी ताजगी है। हिंदी दिवस पर दो प्रश्न मैंने इनसे किये पहला सवाल, "दिल्ली में क्या हिंदी का उपयुक्त माहौल है?" और दूसरा सवाल ,"कोचिंग और अंग्रेजी माध्यम विद्यालयों का हिंदी पर प्रभाव" तो बहुत ही सरलता से जवाब मिला जिसका विडियो साथ में अपलोड किया गया है। 

भारत में हिंदी साहित्यकारों को आज चाय बेचना पड़ रहा है, इसमे मुद्रकों से लेकर पाठकों तक का दोष है। हमें  हिंदी को जिन्दा रखना होगा। अगर आज कोई कदम न उठाया गया तो कल ऐसा न हो कि हिंदी खोद के भी न निकाली जा सके। अगर यहाँ एक लक्ष्मण राव जी हैं तो देश में कितने लक्ष्मण राव जी होंगे, जरा सोचिये। ज्यादा बात नहीं करते छोटी सी बात में ही ज्यादा समझिये और हिंदी से दूर मत भागिए। शब्दविद्या  सेवा संस्थान और National Association of Youth की तरफ से हिंदी दिवस की शुभकामनाएं।
धन्यवाद् 
आपका 
भावेश कुमार पाण्डेय "विनय "
लक्षमण राव जी की कृतियाँ 
अपनी चाय तैयार करते हुए लक्ष्मण राव 

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