नाविक को देने के लिए उनके पास पैसे नहीं होते थे। तैरकर नदी पार करते और स्कूल जाते थे। वे लगनशील थे। उनकी इसी ताकत ने उन्हें एक दिन भारत का प्रधानमंत्री बनाया था। ये थे सबके प्यारे जय जवान-जय किसान का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री जी। हम उनके जीवन से बहुत कुछ सीख सकते हैं।
1-स्वस्थ्य राजनीति :
राजनीति में आई साम्प्रदायिकता, जातीयता और भ्रष्टाचार लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं। युवा को उसी उम्मीदवार को वोट दें, जो शिक्षित और राष्ट्रभक्त होने के साथ क्षेत्र के विकास को प्राथमिकता देता हो। कहीं न कहीं बिहार के विधानसभा चुनावों से इस बात के संकेत मिलना शुरू हो गए हैं।
2-आर्थिक खुशहाली :
अमीर और गरीब के बीच की खाई को रोजगार से पाटा जा सकता है। बेरोजगार छोटा व्यापार करके स्थिति बदल सकते हैं। दिल्ली में जूस की दुकान चलाने वाले गुलशन कुमार तो याद होंगे, वे छोटी शुरुआत से ही कैसेट किंग बने थे।
3-महिलाएं आगे आएं :
हम एक महाशक्ति तभी बन सकते हैं, जब महिलाएं भी हर मुकाम पर पुरुषों के साथ खडी दिखाई दें। आज शायद ही कोई क्षेत्र ऐसा हो जहां महिलाओं की उपस्थिति न हो, लेकिन अभी यह प्रतिशत बहुत कम है। इसे बढाने के लिए हर क्षेत्र में काम कर रही शिक्षित महिलाओं को आगे आना होगा।
4-अच्छी शिक्षा :
शिक्षा न केवल व्यक्ति बल्कि पूरे समाज को बदलने का काम करती है। भारत की प्रगति के पीछे भी शिक्षा का प्रसार ही है। अभी कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां शिक्षा का स्तर संतोषजनक नहीं है। युवा शक्ति इन क्षेत्रों में जाकर लोगों को शिक्षित करने का काम कर सकती है। सरकार के साथ-साथ कई निजी संगठन भी इन क्षेत्रों में काम कर रहे हैं।
5-प्रतिभा संचयन :
अपने देश में योग्यता की कोई कमी नहीं है। यहां से पढकर निकले हजारों प्रोफेशनल्स आज दूसरे देशों में सराहनीय कार्य करके वहां की अर्थव्यवस्था में सहयोग कर रहे हैं। तकनीकी परीक्षण लेकर निकले युवाओं को राष्ट्रहित सर्वोपरि पर ध्यान देते हुए भारत में ही काम करना चाहिए। उन्हें धीरूभाई अंबानी की तरह सोचना चाहिए जो कभी विदेश में छोटी सी नौकरी करते थे लेकिन भारत आकर उन्होंने एक बडा एम्पायर खडा कर लिया था।
कामयाबी है क्या?
बहुत से लोगों के लिए कामयाबी का मतलब केवल जो चाहा, वह मिल गया है, लेकिन यह इसकी वास्तविक परिभाषा नहीं है। वास्तविकता में कामयाबी वह उपलब्धि है, जो कुछ पाने के बाद बहुत कुछ हासिल करने की प्रेरणा देती है। यह हमेशा आगे बढाने का काम करती है न केवल एक जगह स्थापित करने का।
ऐसी भविष्यवाणी की जाती रही है कि 21वीं सदी के पहले दशक में पूर्व का एक देश वैश्विक महाशक्ति बन जाएगा। देश का हर नागरिक जो वतन से मोहब्बत करता है, यह उपलब्धि भारत के हाथ लगते देखना चाहता है। यही कारण है कि गांव का भोला-भाला युवक भी अब सूचना और संचार प्रौद्योगिकी पर सहज पकड हासिल कर रहा है। आज युवा प्रतियोगी परीक्षा से लेकर चिकित्सा, इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी हर विधा में अपनी क्षमता का परचम लहरा रहे हैं। ग्रामीण हों या फिर शहरी, युवाओं ने अपने लक्ष्य से निगाह हटाने की गलती नहीं की है। आज इस अवसर पर हम कह सकते हैं कि अगर भारतीय युवाओं की रचनात्मक शक्तिका सही मूल्यांकन किया जाएगा तो निश्चित ही युवा भारत के युवा सपनों को नई उडान मिल जाएगी।
दायित्व नवजवानों का
अब इस सपने को हकीकत में बदलने का दायित्व नवजवानों का है, जिन्हें आगे आकर राष्ट्र की इस भावना को पूरा करने का दायित्व उठाना है। यह काम मुश्किल जरूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं। भारतीय युवाओं में निष्कपटता, अभिप्रेरणा, प्रतिबद्घता, ईमानदारी, ऊर्जा और आत्मप्रेरणा जैसे गुण जन्मजात मौजूद हैं। किसी भी राष्ट्र को आर्थिक एवं सैन्य रूप से मजबूत बनाने में इन्हीं की जरूरत होती है।
मार्गदर्शन की जरूरत
अनुभव का समावेश होने से युवा शक्ति की सफलता और भी पुख्ता हो जाती है। यह अनुभव ही उन्हें अपनी ऊर्जा को सही दिशा में लगाने के लिए प्रेरित करती है। यह काम उम्रदराज लोग कर सकते हैं। ऐसे लोगों की सही निष्कपट राय और मार्गदर्शन असंभव को भी संभव में बदल सकता है। इतिहास गवाह है कि किस तरह कौटिल्य (चाणक्य) ने उस समय विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक मगध (नंद वंश) का पतन किया था। चाणक्य से मिला अनुभव और ज्ञान ही चंद्रगुप्त की असली ताकत थी। इस शक्ति के माध्यम से ही चंद्रगुप्त ने विशाल मौर्य साम्राज्य का गठन किया था, जो उस समय विश्व का सर्वशक्तिशाली साम्राज्य था।
चुनौतियां हैं अपार
हमारे सामने जो काम है, वह कठिन है। अर्थतंत्र और राजतंत्र की समस्याओं सहित एक पूरी लंबी लिस्ट मौजूद है। यह समस्याएं ही सर्वशक्ति बनने के मार्ग की सबसे बडी बाधाएं हैं। इनकी जडें भी बहुत गहरी हैं। इन्हें पूर्ण निष्ठा के साथ समर्पण, अनुशासन और राष्ट्र के प्रति एकनिष्ठ होकर ही दूर किया जा सकता है। हमें अपने आप को इस तरह का बनाना होगा कि स्वार्थी और अनैतिक लोग हमारा गलत कार्यो में उपयोग न कर सकें और हम अपनी ऊर्जा का शत्प्रतिशत राष्ट्र निर्माण में ही व्यय करें।
समर्पण की भावना
हम लोगों के पास जो भी है, वह इस मुल्क की ही देन है। लेकिन क्या हमने कभी यह सोचा है कि अपने वतन को हम क्या दे रहे हैं? जिस दिन से जिस किसी के मन में यह विचार उठने लगेगा, उस दिन से ही वह राष्ट्र के लिए काम करना शुरू कर देगा। एक सुदृढ, संगठित और उन्नत भारत का निर्माण करने के लिए हम युवाओं को अपना सर्वस्व इस राष्ट्र को समर्पित करना है। इस गणतंत्र दिवस पर हमें कुछ ऐसी चीजों को ही अपनाने की जरूरत है, जो अपने विकास के साथ-साथ इस राष्ट्र के स्वाभिमान में भी विस्तार कर सके।
युवाओं की सोच
समय के साथ-साथ परिवर्तन का आना स्वाभाविक है और यह परिवर्तन आज के युवाओं की सोच में भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है। मानसिकता में आ रहा यह बदलाव इधर एक दशक से कुछ ज्यादा ही दिखाई दे रहा है। आज का युवा नौकरी में पैसे के साथ साथ स्टेबिलिटी की भी तलाश कर रहा है। वह अपनी इस तलाश को गवर्नमेंट सेक्टर से पूरी करना चाहता है, इसलिए वह बैंक, इंश्योरेंस, शिक्षा, सेना जैसे परंपरागत सरकारी क्षेत्रों की ओर रुख कर रहा है। अगर आप शारीरिक रूप से चुस्त और दुरुस्त हैं तो सेना और अर्धसैनिक बलों में भी काम करके कॅरियर के साथ-साथ राष्ट्र सेवा कर सकते हैं।
गणतंत्र पर संकल्प
अपने देश की आधी से ज्यादा आबादी की उम्र तीस वर्ष से कम है। अब लंबी अवधि तक देश में युवाओं का प्रतिनिधित्व रहना भी तय है अत: युवाओं की सोच के मायने और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं। काम की इस आपाधापी और नए मौकों की तलाश में हम युवाओं को अपनी नैतिकता भी बरकरार रखनी होगी। हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि जैसे-जैसे हम आगे बढ रहे हैं, वैसे-वैसे हम बुराइयों का शिकार भी हो रहे हैं। कई योजनाएं जमीन पर आने के पहले ही भ्रष्टाचार के पेट में समा जाती हैं। इस तरह के हालातों को बदलना होगा। हमें 62वें गणतंत्र के अवसर पर यह संकल्प लेना होगा कि इस तरह की सभी समस्याओं का हम डटकर मुकाबला करेंगे। यदि हम ऐसा संकल्प लेने और उसका पालन करने में सफल हो गए तो यह 62वां गणतंत्र ही सर्वशक्तिशाली भारत की आधारशिला बन जाएगा।
Source: Dainik Jagran
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