रात्रि के दस बज चुके थे। रीता अपने कार्यालय से निकली और बस में बैठ गई। आज घर लौटने में देर हो गई थी। मन के अंदर संशय घर कर गया था, गीता मन ही मन साहस जुटा रही थी। बगल की सीट पर एक अधेड आकर बैठ गया। एक घंटे में बस स्टॉप आ गया तो वह उतरी और तेज कदमों से चलने लगी।
एक किलोमीटर की दूरी पर गीता का आवास था। सडक सुनसान हो गई थी तभी उसे अहसास हुआ कि कोई उसका पीछा कर रहा है। वह तेज चलने लगी और उसकी धडकन बढ गई। मन में कई अनजान आशंकाएं घिर आई। एक मोड देखकर वह गलीनुमा रास्ते में घुस गई और चाल को और भी तेज कर दिया।
जो व्यक्ति पीछा कर रहा था, वह रमेश था। गांव से अपनी बेटी को पैसा देने आया था। रमेश के पांव पीछा करते करते कांपने लगे थे। डाक्टर ने उसे तेज चलने से मना किया था परंतु वह आज तेज चलने की ही कोशिश कर रहा था।
गीता को लगने लगा था कि आज कुछ बुरा होने वाला है। इस ठंड के मौसम में सडकें, गली, मुहल्ले सभी खाली थे और लूटपाट आम बात थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? सोचने लगी- मैं कमजोर नहीं हूं। मेरे पास भी मिर्ची का पाउडर है तभी तेज भागता हुआ वह उसके पास पहुंच ही गया। दमे का रोगी रमेश हांफ रहा था। गीता साहस करके रुक गई और रमेश कुछ बोलता कि वह चिल्लाने लगी-लडकी का पीछा करते शर्म नहीं आती है।
वह तन कर खडी हो गई। वह जता रही थी कि उसे किसी का डर नहीं। रमेश अवाक् था और कुछ कहने की स्थिति में नहीं था। रमेश ने वह फाइल जो गीता बस की सीट पर भूल आई थी, उसकी तरफ बढा दी। गीता ने फाइल ले ली और मिर्च का पाउडर उसके हाथों से गिर पडा। वह नि:शब्द थी, फाइल अनमोल थी, वह बोली- सॉरी अंकल!मेंशन नॉट।- कहते हुए रमेश अपने रास्ते हो लिया और भारी कदमों, गीता अपने रास्ते।
Source: Jagran
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