ये न सोचा था की इतने याद आओगे तुम
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वैसे तो तेरी ना में भी मैंने ढूंढ ली अपनी ख़ुशी
तू जो अगर हाँ कहे तो बात होगी और ही
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कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है
के ज़िन्दगी तेरी जुल्फों के नर्म छाओं में गुजरने पति तो शादाब हो भी सकती थी ये रंज -ओ -गम की
स्याही जो दिल पे छाई है तेरे नज़र की शुवाओं में खो भी सकती थी मगर ये हो न सका
मगर ये हो न सका और अब ये आलम हैकी तू नहीं तेरा घूम तेरी जुस्तजू भी नहीं
गुज़र रही है कुछ इस तरह ज़िन्दगी जैसे इसे किसी के सहारे की आरजू भी नहीं
न कोई राह न मंजिल न रौशनी का सुराग, भटक रही है अंधेरो में ज़िन्दगी मेरी
इन्ही अंधेरों में रह जाऊंगा कभी खो करमैं जानता हु मेरी हम नफ़ज़ मगर युही
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है
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