ये
देश की राजधानी का चुनाव है, ये दिल्ली का चुनाव है | देश की आर्थिक
राजधानी तो मुंबई है और आधुनिक भी लेकिन दिल्ली को जागरूक राज्य के रूप में
जाना जाता है |
देश में कहीं भी कुछ भी हो सबसे पहले मोमबत्ती दिल्ली में ही जलती है, आखिर दिल्ली में देश का दिल जो बसता है | लोकसभा चुनावों में एक अलग सरगर्मी थी और एक अलग ही तरह की आंधीनुमा बयार थी जिसमे कई काबिल बह भी गए और कई नाकाबिल बस भी गए | लोकसभा चुनावों के सामने दिल्ली का चुनाव कोई मायने नहीं रखना चाहिए लेकिन हुआ इस से बिलकुल उलट |
दिल्ली चुनावों की जलेबी बनाने के लिए सभी मीडिया घराने, समाजसेवी, देश भर के राजनेता और तमाम ऐसी पार्टियाँ जिनका इन चुनावों में रत्ती भर भी असर नहीं वो भी काफी सक्रिय दिखीं | ये लड़ाई ऐसी थी कि भाजपा बनाब “आल” आदमी पार्टी हो चूका था |
भारतीय जनता पार्टी को शुरू से ही लग रहा था कि इस बार यह लड़ाई सिर्फ कहने के लिए हैं और नतीजे तो पहले से ही तय है, और आम आदमी पार्टी ने इसे अपनी करो या मरो कि लडाई बनाकर भाजपा को मुश्किल में ला दिया | लेकिन जैसे जैसे चुनाव करीब आते गए तो भाजपा आलाकमान को समझ आ गया कि कोई चेहरा तो देना ही होगा | भाजपा ने अपने कर्मठ, जुझारू वरिष्ठ नेताओं को मार्गदर्शन मंडल में रखकर केजरीवाल की पूर्व सहयोगी किरण बेदी का पार्टी में मुखौटे के रूप में आयात किया और पार्टी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार दिया |
भाजपा अपने इस दांव को काफी हल्का समझ रही थी लेकिन यह दांव आम आदमी पार्टी के ऊपर भारी पड़ गया और आम आदमी पार्टी अपनी “भगोड़े” छवि से बाहर आने में सफल होती नहीं दिखी, बावजूद इसके तमाम टीवी चैनलों ने क्रन्तिकारी ढंग से आम आदमी पार्टी की तरफदारी में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी | इसके बाद भी आम आदमी पार्टी अकेली ऐसे पार्टी रही जिसने प्रतिदिन मजदूरी पर कार्यकर्ताओं को बटोरा और प्रचार कराया और वहीँ भाजपा के कार्यकर्ता बेदी तो नहीं लेकिन मोदी के नाम वोट मांगते गली गली नजर आये और कांग्रेस के लाइफटाइम सिम कार्ड जैसे वाले कार्यकर्ता वफादारी से अपना काम सिर्फ चुनाव के दिन बूथ एजेंट के रूप में करते दिखे |
इन सब में ख़ास बात यह रही कि इस बार मतदान के लिए किसी को जागरूक करने की आवश्यकता नहीं पड़ी | चाहे वो कोई भाजपा को वोट दे रहा हो या किसी आशा के साथ आआपा को या फिर अपनी निष्ठां वो कांग्रेस में दिखा रहा हो |
नतीजे क्या होंगे ये तो वक़्त बताएगा लेकिन अभी से कोई भी अनुमान लगाना बेईमानी होगी क्योंकि इस चुनाव में मतदाताओं में वास्तविकता में गुप्त मतदान किया है और निर्णय 10 फरवरी को हमारे सामने होगा |
अच्छा ! नमस्ते !!
देश में कहीं भी कुछ भी हो सबसे पहले मोमबत्ती दिल्ली में ही जलती है, आखिर दिल्ली में देश का दिल जो बसता है | लोकसभा चुनावों में एक अलग सरगर्मी थी और एक अलग ही तरह की आंधीनुमा बयार थी जिसमे कई काबिल बह भी गए और कई नाकाबिल बस भी गए | लोकसभा चुनावों के सामने दिल्ली का चुनाव कोई मायने नहीं रखना चाहिए लेकिन हुआ इस से बिलकुल उलट |
दिल्ली चुनावों की जलेबी बनाने के लिए सभी मीडिया घराने, समाजसेवी, देश भर के राजनेता और तमाम ऐसी पार्टियाँ जिनका इन चुनावों में रत्ती भर भी असर नहीं वो भी काफी सक्रिय दिखीं | ये लड़ाई ऐसी थी कि भाजपा बनाब “आल” आदमी पार्टी हो चूका था |
भारतीय जनता पार्टी को शुरू से ही लग रहा था कि इस बार यह लड़ाई सिर्फ कहने के लिए हैं और नतीजे तो पहले से ही तय है, और आम आदमी पार्टी ने इसे अपनी करो या मरो कि लडाई बनाकर भाजपा को मुश्किल में ला दिया | लेकिन जैसे जैसे चुनाव करीब आते गए तो भाजपा आलाकमान को समझ आ गया कि कोई चेहरा तो देना ही होगा | भाजपा ने अपने कर्मठ, जुझारू वरिष्ठ नेताओं को मार्गदर्शन मंडल में रखकर केजरीवाल की पूर्व सहयोगी किरण बेदी का पार्टी में मुखौटे के रूप में आयात किया और पार्टी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार दिया |
भाजपा अपने इस दांव को काफी हल्का समझ रही थी लेकिन यह दांव आम आदमी पार्टी के ऊपर भारी पड़ गया और आम आदमी पार्टी अपनी “भगोड़े” छवि से बाहर आने में सफल होती नहीं दिखी, बावजूद इसके तमाम टीवी चैनलों ने क्रन्तिकारी ढंग से आम आदमी पार्टी की तरफदारी में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी | इसके बाद भी आम आदमी पार्टी अकेली ऐसे पार्टी रही जिसने प्रतिदिन मजदूरी पर कार्यकर्ताओं को बटोरा और प्रचार कराया और वहीँ भाजपा के कार्यकर्ता बेदी तो नहीं लेकिन मोदी के नाम वोट मांगते गली गली नजर आये और कांग्रेस के लाइफटाइम सिम कार्ड जैसे वाले कार्यकर्ता वफादारी से अपना काम सिर्फ चुनाव के दिन बूथ एजेंट के रूप में करते दिखे |
इन सब में ख़ास बात यह रही कि इस बार मतदान के लिए किसी को जागरूक करने की आवश्यकता नहीं पड़ी | चाहे वो कोई भाजपा को वोट दे रहा हो या किसी आशा के साथ आआपा को या फिर अपनी निष्ठां वो कांग्रेस में दिखा रहा हो |
नतीजे क्या होंगे ये तो वक़्त बताएगा लेकिन अभी से कोई भी अनुमान लगाना बेईमानी होगी क्योंकि इस चुनाव में मतदाताओं में वास्तविकता में गुप्त मतदान किया है और निर्णय 10 फरवरी को हमारे सामने होगा |
अच्छा ! नमस्ते !!
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