Friday, July 3, 2015
Friday, April 24, 2015
ThinkYuva एक नयी शुरुआत
ThinkYuva की तैयारी चल रही है, हम सभी लोग मिलकर एक नयी तरह की विचारधारा पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले हैं जिसको हम "Youthist" कहेंगे। "Youthism" शब्द तो पुराना है लेकिन इसके सही अर्थ को पता नही किसी ने आकार दिया या नहीं।
Youthist शब्द से न्याय कर पाना ही अपने आप में एक बड़ी चुनौती है, और Thinkyuva इस विचारधारा की एक अच्छी फसल के रूप में तैयार हो इसके लिए हमने कोशिश शुरू कर दी है।
हमारा यह संकल्प है कि थिंकयुवा आपको निराश नहीं करेगा और अपने नाम को चरितार्थ करते हुए समाज का हिस्सा बनेगा।
आपकी दैनिकचर्या का एक भाग होगा और आपके परिवार का एक सदस्य बनेगा। थिंकयुवा आपका अधिकार होगा और आप थिंकयुवा परिवार।
आप सभी का आशीर्वाद ही तो चाहिए जो हमें आगे बढ़ने की ताकत देगा।
Tuesday, April 14, 2015
आज अम्बेडकर सबके हो गए
समय समय पर अम्बेडकर शब्द का अलग अलग तरीकों से उपयोग होता आया है, बहुत कम ही देखा गया है कि इसे लोगों ने गैरराजनैतिक एवं सामाजिक रूप से प्रयोग किया हो | भारत रत्न डॉ. भीम राव अम्बेडकर को मिला था लेकिन उस भारत रत्न भीम के व्यक्तित्व का प्रयोग अब अम्बेडकर के रूप में बहुरूपिये नेता करते हैं |
Dr. B. R. Ambedkar |
पिछले कई दिनों तक अम्बेडकर के नाम का कॉपीराइट मायावती के हाथी ने ले रखा था और इस वजनदार नाम को अपने ऊपर ढोते चलता था लेकिन अब तमाम राजनैतिक पार्टियों ने मायावती से उनका एकमात्र ट्रेडमार्क भी छीन लिया |
सरकारी छुट्टी की घोषणा तो मायावती ने मुख्यमंत्री रहते ही की थी लेकिन शायद उन्हें यह नहीं पता था कि छुट्टी की जगह अगर स्कूलों में आज के दिन पढाई होती तो अम्बेडकर ज्यादा खुश होते | आखिर वो भी एक मेधावी छात्र से लेकर देश के संविधान के रचनाकार थे, हाँ वही संविधान जो विधि के छात्रों को तो क्या 40 वर्ष प्रैक्टिस कर लेने वाले अधिकतर लोगों को याद नहीं हो पाता |
राजनैतिक दल और छुटभैये नेता से लेकर बड़े कहे जाने वाले नेता तक अम्बेडकर की सही शिक्षा और सन्देश देने के बजाय उनके नाम और व्यक्तित्व का चेक भुनाने में लगे हुए दिख रहे हैं |
और दलित कही जाने वाला समुदाय यही समझकर खुश है कि हमारे भगवान की पूजा अब पंडित, ठाकुर भी करते हैं, अम्बेडकर को भगवान मान बैठे दलित वर्ग को भगवान का आशीर्वाद तो बहुत मिला लेकिन उसके साइड इफेक्ट्स को उन सामान्य वर्ग के लोगों को भुगतना पड़ा है | दलित आज भी कहता है उसे उसका हक़ चाहिए लेकिन गरीब की कौन सुने, क्या सामान्य वर्ग का गरीब किसी हक़ का हकदार नहीं है ??
आज के समाज का भगवान कौन है ? कौन इस समस्या का निवारण करेगा कि गरीब की चिंता, किसान की चिंता कैसे हो ? क्या अम्बेडकर फिर पैदा होंगे ?
Monday, February 9, 2015
आम आदमी पार्टी को बहुमत या मुफ्तमत
जब आम आदमी पार्टी ने राजनीति में शुरुआत की तो सभी को चौंका दिया था कि अभी कल की आई पार्टी दिल्ली में कैसे 28 सीटों पर अपना कब्ज़ा जमा सकती है , यह कांग्रेस विरोधी लहर का एक नमूना था और इसके बाद लोकसभा चुनावों में भी आम आदमी पार्टी ने 4 सीटों के साथ अच्छी शुरुआत की |
यह दिल्ली विधानसभा 2015 का चुनाव था और केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की एक सफल सरकार चल रही थी और दिल्ली छोड़कर और सभी जगहों पर सबको अनुमान था कि जिस प्रकार लोकसभा और उसके बाद कई राज्यों में विधानसभा चुनावों में मोदी लहर का फायदा मिला था वो इस बार भी मिलेगा और दिल्ली चुनाव में भाजपा की भारी मतों से जीत अगर नहीं भी होगी तो जीत तो होगी ही, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और दिल्ली लोकल जीत गयी |
आम आदमी पार्टी के काम करने के तरीके पर विचार करें तो यह पार्टी एक आन्दोलन के दत्तक पुत्र के रूप में देश को परोसी गयी, जिस प्रकार से मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, शायद यादव, राम विलास पासवान जैसे नेता जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन की उपज थे | और कालांतर में इनकी पार्टियाँ लोगों को विकास के रास्ते पर ले जाने और जनता को मजबूत करने के बजाय उसे अपने ऊपर आश्रित करने और मुफ्तखोर बनाने का प्रयास किया है | आम आदमी पार्टी ने यह सीख भलीभांति इन क्षेत्रीय दलों से ली कि अगर चुनाव जीतना है तो लोगों को मुफ्त बांटने और मुफ्त सामानों के वादे करो क्योंकि हर व्यक्ति अपने फायदे के लिए वोट देता है न कि देश के लिए |
पूरे देश से आये आयकर का एक बड़ा हिस्सा सिर्फ दिल्ली और मुंबई में खर्च हो जाता है, हालांकि मुंबई सबसे ज्यादा आयकर देने वाला शहर भी है | क्या दिल्ली के लोगों ने पूरे देश से आ रहे धन और स्नेह का यह सही सिला दिया है आम आदमी पार्टी को जिताकर यह तो अभी बाद में ही पता चलेगा लेकिन इतना तो जरुर होगा कि आम आदमी पार्टी आगे चलकर अपने 70 के 70 वादों के पूरा न होने पर केंद्र को घेरने का प्रयास करेगी कि वो हमें समर्थन नहीं दे रहे हैं, वैसे वादे तो अपने दम पर ही किये जाने चाहिए किसी के भरोसे नहीं |
दिल्ली की जनता ने दिल्ली को एक बहुमत की सरकार दी यह एक अच्छी बात है लेकिन सिर्फ मुफ्त के लिए, सिर्फ 200 लीटर मुफ्त पानी और चिल्लर यूनिट बिजली अगर दिल्ली जैसी पढ़ी लिखी जनता को बहका सकती है तो अगर देश का वोट 100 रुपये में बिकता हो तो गलत क्या है ??
जब देश की राजधानी के लोग ही मुफ्त की चीजों में विश्वास रखते हों तो उत्तर प्रदेश अगर फ्री लैपटॉप और बेरोजगारी भत्ता के लिए वोट देता है तो गलत क्या है ??
आम आदमी पार्टी को बहुमत के लिए साधुवाद और उम्मीद करते हैं कि आम आदमी पार्टी जनता के लिए काम करेगी न कि धरने के लिए |
आल इंडिया बकवास शो
एआईबी ने के एक नॉकआउट राउंड किया लगभग एक घंटे का और इसे यूट्यूब पर धड़ल्ले से दिखा भी रहे हैं | मैंने कई लोगों के ट्विटर और फेसबुक पर इसकी बड़ाई सुनकर मैंने भी देखने का प्रयास किया लेकिन मुझे इसमें उस फूहड़ता की झलक दिखी जो इनके जैसे लोगों के अन्दर नहीं होनी चाहिए थी | अपनी माँ के सामने कारन जौहर जिस प्रकार के अश्लील हरकतों को अंजाम दे रहे थे और बातों में कहीं भी नैतिकता थी ही नहीं, मुझे नहीं लगता कि उनके परिवार में कभी भी किसी प्रकार के नैतिक आचरण का माहौल रहा होगा |
अलिया भट्ट, सोनाक्षी सिन्हा, दीपिका पादुकोण और भी अन्य गणमान्य कलाकार जैसे लोग जिन्हें महिलाओं के साथ हो रहे दुष्कर्म पर तुरंत मिर्ची लग जाती है वो लोग इस अश्लील कार्यक्रम का ख़ुशी से हिस्सा बन रहे थे | पता नहीं कितनी लडकिय इन्हें इनकी मेहनत के लिए अपना आदर्श मानती हैं और इनकी हरकतें ऐसी कि इन्हें कोई शरीफ व्यक्ति अपने घर में बाई भी न रखे |
अर्जुन कपूर और रणवीर सिंह सरीखे बेहतरीन कलाकार भी इस कार्यक्रम का हिस्सा होते हुए गर्व महसूस कर रहे थे | तर्क यह था कि इस पूरे बकवास कार्यक्रम से इन लोगों ने जो पैसे कमाए हैं उसमे से चालीस लाख रूपए दान दिए हैं | क्या जिनकी एक फिल्म की फीस करोड़ों में होती हो उन्हें लाखों में दान करने के लिए किसी शो को करने की आवश्यकता पड़नी चाहिए ?? और वो भी ऐसा शो जिसे किसी सभ्य समाज में देखा ही न जा सके |
कुछ चीजें बहुत ही व्यक्तिगत होती हैं, मेरा यह भी मानना है कि बहुत घनिष्ठ मित्र आपस में गाली गलौच से बात करते रहते हैं लेकिन इनका भी एक दायरा होता है, सार्वजनिक नहीं होता |
और इसके बाद दर्शकों की बात करें तो इसकी वाहवाही करने वाले दर्शक वही हैं जिन्हें चीप मेंटालिटी वाले लोग नहीं पसंद हैं, जिन्होंने आँखों पर आधुनिकता के चश्मे पहने हुए हैं | ये वही हैं जो एक रेप होने पर मोमबत्ती लेकर बैठ जाते हैं क्योंकि मीडिया उसे ठीक से दिखाता है और अपने बगल वाले घर में ही किसी पीड़ित महिला या लड़की की मदद नहीं करने जाते क्योंकि ये दुसरे घर का मामला होता है |
अपील बस इतनी है कि आपसे उम्मीद अच्छे की होती है इसलिए दुःख होता है आपके दुष्कर्मों पर | आगे से ऐसा न हो इसकी मात्र फिर से उम्मीद ही कर सकते हैं |
Sunday, February 8, 2015
दिल्ली चुनावों का हाल
ये
देश की राजधानी का चुनाव है, ये दिल्ली का चुनाव है | देश की आर्थिक
राजधानी तो मुंबई है और आधुनिक भी लेकिन दिल्ली को जागरूक राज्य के रूप में
जाना जाता है |
देश में कहीं भी कुछ भी हो सबसे पहले मोमबत्ती दिल्ली में ही जलती है, आखिर दिल्ली में देश का दिल जो बसता है | लोकसभा चुनावों में एक अलग सरगर्मी थी और एक अलग ही तरह की आंधीनुमा बयार थी जिसमे कई काबिल बह भी गए और कई नाकाबिल बस भी गए | लोकसभा चुनावों के सामने दिल्ली का चुनाव कोई मायने नहीं रखना चाहिए लेकिन हुआ इस से बिलकुल उलट |
दिल्ली चुनावों की जलेबी बनाने के लिए सभी मीडिया घराने, समाजसेवी, देश भर के राजनेता और तमाम ऐसी पार्टियाँ जिनका इन चुनावों में रत्ती भर भी असर नहीं वो भी काफी सक्रिय दिखीं | ये लड़ाई ऐसी थी कि भाजपा बनाब “आल” आदमी पार्टी हो चूका था |
भारतीय जनता पार्टी को शुरू से ही लग रहा था कि इस बार यह लड़ाई सिर्फ कहने के लिए हैं और नतीजे तो पहले से ही तय है, और आम आदमी पार्टी ने इसे अपनी करो या मरो कि लडाई बनाकर भाजपा को मुश्किल में ला दिया | लेकिन जैसे जैसे चुनाव करीब आते गए तो भाजपा आलाकमान को समझ आ गया कि कोई चेहरा तो देना ही होगा | भाजपा ने अपने कर्मठ, जुझारू वरिष्ठ नेताओं को मार्गदर्शन मंडल में रखकर केजरीवाल की पूर्व सहयोगी किरण बेदी का पार्टी में मुखौटे के रूप में आयात किया और पार्टी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार दिया |
भाजपा अपने इस दांव को काफी हल्का समझ रही थी लेकिन यह दांव आम आदमी पार्टी के ऊपर भारी पड़ गया और आम आदमी पार्टी अपनी “भगोड़े” छवि से बाहर आने में सफल होती नहीं दिखी, बावजूद इसके तमाम टीवी चैनलों ने क्रन्तिकारी ढंग से आम आदमी पार्टी की तरफदारी में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी | इसके बाद भी आम आदमी पार्टी अकेली ऐसे पार्टी रही जिसने प्रतिदिन मजदूरी पर कार्यकर्ताओं को बटोरा और प्रचार कराया और वहीँ भाजपा के कार्यकर्ता बेदी तो नहीं लेकिन मोदी के नाम वोट मांगते गली गली नजर आये और कांग्रेस के लाइफटाइम सिम कार्ड जैसे वाले कार्यकर्ता वफादारी से अपना काम सिर्फ चुनाव के दिन बूथ एजेंट के रूप में करते दिखे |
इन सब में ख़ास बात यह रही कि इस बार मतदान के लिए किसी को जागरूक करने की आवश्यकता नहीं पड़ी | चाहे वो कोई भाजपा को वोट दे रहा हो या किसी आशा के साथ आआपा को या फिर अपनी निष्ठां वो कांग्रेस में दिखा रहा हो |
नतीजे क्या होंगे ये तो वक़्त बताएगा लेकिन अभी से कोई भी अनुमान लगाना बेईमानी होगी क्योंकि इस चुनाव में मतदाताओं में वास्तविकता में गुप्त मतदान किया है और निर्णय 10 फरवरी को हमारे सामने होगा |
अच्छा ! नमस्ते !!
देश में कहीं भी कुछ भी हो सबसे पहले मोमबत्ती दिल्ली में ही जलती है, आखिर दिल्ली में देश का दिल जो बसता है | लोकसभा चुनावों में एक अलग सरगर्मी थी और एक अलग ही तरह की आंधीनुमा बयार थी जिसमे कई काबिल बह भी गए और कई नाकाबिल बस भी गए | लोकसभा चुनावों के सामने दिल्ली का चुनाव कोई मायने नहीं रखना चाहिए लेकिन हुआ इस से बिलकुल उलट |
दिल्ली चुनावों की जलेबी बनाने के लिए सभी मीडिया घराने, समाजसेवी, देश भर के राजनेता और तमाम ऐसी पार्टियाँ जिनका इन चुनावों में रत्ती भर भी असर नहीं वो भी काफी सक्रिय दिखीं | ये लड़ाई ऐसी थी कि भाजपा बनाब “आल” आदमी पार्टी हो चूका था |
भारतीय जनता पार्टी को शुरू से ही लग रहा था कि इस बार यह लड़ाई सिर्फ कहने के लिए हैं और नतीजे तो पहले से ही तय है, और आम आदमी पार्टी ने इसे अपनी करो या मरो कि लडाई बनाकर भाजपा को मुश्किल में ला दिया | लेकिन जैसे जैसे चुनाव करीब आते गए तो भाजपा आलाकमान को समझ आ गया कि कोई चेहरा तो देना ही होगा | भाजपा ने अपने कर्मठ, जुझारू वरिष्ठ नेताओं को मार्गदर्शन मंडल में रखकर केजरीवाल की पूर्व सहयोगी किरण बेदी का पार्टी में मुखौटे के रूप में आयात किया और पार्टी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार दिया |
भाजपा अपने इस दांव को काफी हल्का समझ रही थी लेकिन यह दांव आम आदमी पार्टी के ऊपर भारी पड़ गया और आम आदमी पार्टी अपनी “भगोड़े” छवि से बाहर आने में सफल होती नहीं दिखी, बावजूद इसके तमाम टीवी चैनलों ने क्रन्तिकारी ढंग से आम आदमी पार्टी की तरफदारी में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी | इसके बाद भी आम आदमी पार्टी अकेली ऐसे पार्टी रही जिसने प्रतिदिन मजदूरी पर कार्यकर्ताओं को बटोरा और प्रचार कराया और वहीँ भाजपा के कार्यकर्ता बेदी तो नहीं लेकिन मोदी के नाम वोट मांगते गली गली नजर आये और कांग्रेस के लाइफटाइम सिम कार्ड जैसे वाले कार्यकर्ता वफादारी से अपना काम सिर्फ चुनाव के दिन बूथ एजेंट के रूप में करते दिखे |
इन सब में ख़ास बात यह रही कि इस बार मतदान के लिए किसी को जागरूक करने की आवश्यकता नहीं पड़ी | चाहे वो कोई भाजपा को वोट दे रहा हो या किसी आशा के साथ आआपा को या फिर अपनी निष्ठां वो कांग्रेस में दिखा रहा हो |
नतीजे क्या होंगे ये तो वक़्त बताएगा लेकिन अभी से कोई भी अनुमान लगाना बेईमानी होगी क्योंकि इस चुनाव में मतदाताओं में वास्तविकता में गुप्त मतदान किया है और निर्णय 10 फरवरी को हमारे सामने होगा |
अच्छा ! नमस्ते !!
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