कभी सुबह कि चाय के वक़्त तो कभी खाते वक़्त
कभी आते हुए कभी जाते हुए,
गाली देने में कोई कोताही नहीं बरते
लेकिन कोई जवाब ही नहीं
अरे भाई गाली की भी कोई इज्जत होती है।
ऐसे ही थोड़े ही हम फ्री में गाली दे रहे हैं इतने दिन से
सब आपने जो किया है उसी के इनाम में दे रहे हैं
और आप कोई जवाब ही नहीं दे रहे हैं
कब तक ऐसे काम चलेगा?
कसम खाता हूँ कि बिना गाली दिए
पिछले दो साल से कभी नहीं सोया हूँ।
इतना रेगुलर याद करता हूँ तब भी कोई जवाब नहीं।
ऊधर अन्ना गरिया रहे हैं उधर कजरिया गरिया रहा है
कुछ तो शर्म करो, ऊपर से बोले कुछ नहीं
वफादार जरुर बदल दिए लूटने के लिए
गाली देने में जरा भी कमी नहीं किया हूँ,
मेट्रो से लेकर बस तक, घर से सड़क तक
दोस्त से परिवार तक, दुकानदार से पहलवान तक
सबसे बात करते वक़्त तुमको गाली जरुर देता हूँ
लेकिन फिर भी ऐ मेरे भ्रष्ट नेता कब सुधरोगे ...
कहीं ऐसा न हो कि कुछ और गड़बड़ हो जाए
-दिल से निकला
भावेष कुमार पाण्डेय "विनय"
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