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फैजाबाद दंगे में 24 अक्टूबर को जलती यह दूकान |
जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बहुमत से आई और मायावती का तख्ता पलट कर जब अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाया गया तब शायद जनता में किसी को यह अंदेशा नहीं रहा होगा की वो उत्तर प्रदेश को जिस हाथ में सौंप रहे हैं है वो हाथ सुरक्षित नहीं हैं.
अखिलेश की जिस युवा छवि का हवाला देकर समाजवादी पार्टी ने जनता से वोट लिए वैसी कोई योजना आज तक अखिलेश जनता के सामने नहीं पेश कर पाए. अपनी सेक्युलर छवि को बनाये रखने वाले मुस्लिमों के मनमोहक के रूप को अपने पिता के ही पदचिन्हों पर चलते हुए उसे बनाये रखा.
उत्तर प्रदेश में नयी सरकार आने के बाद लगातार आठवाँ साम्प्रदायिक दंगा जब फैजाबाद में हुवा तो पूरा शहर दहल गया. दुर्गा पूजा में एक महिला के साथ दुर्व्यवहार से निकला यह मुद्दा एक बड़े संघर्ष में बदलता हुवा दिखने लगा. दुर्गा माता की मूर्ति विसर्जन के लिए ले जाते वक़्त किसी मनहूस ने पत्थर फेंका और मामला यही से प्रारंभ होते हुए हिन्दू मुस्लिम संघर्ष में कब तब्दील हुवा पता ही नहीं चला. दो दर्जन से ज्यादा वाहन जले , दुकानें और घर जले और कई मौतों के बाद भी यह मामला थमा नहीं. प्रसाशन ने पहले धरा 144 लगाया और फिर गुरुवार शाम तक कर्फ्यू का ऐलान हो गया.
यह पहला दंगा नहीं था :
एक जून को मथुरा के कोसीकला में पानी को लेकर मजहबी विवाद जिसे पांच लोग मरे और सोलह घायल हुए.
23 जून को एक युवती के साथ हुए दुराचार के चलते साम्प्रदायिक रूप लेते हुए दंगे में 40 घर राख हो गए.
ऐसे ही 23 जुलाई को बरेली, 17 अगस्त को असम, कानपुर, लखनऊ, और 14 सितम्बर को गाज़ियाबाद में भी हिन्दू मुस्लिम साम्प्रदायिक दंगे हुए जिनमें कई जानें गयीं, घर जले, दुकानें जलीं, कर्फ्यू लगा, लेकिन निष्कर्ष के तौर पर 24 अक्टूबर को फैजाबाद का दंगा मिला.
सेक्युलर होने का मतलब शान्ति और सौहार्द्र होता है. यह नहीं की अगर दुसरे धर्म का व्यक्ति दोषी है तो उसे सिर्फ इसलिए सजा न दी जाय क्यूंकि हमें अपनी सेक्युलर छवि बनाये रखनी है. और यह सब करते हुए अखिलेश भी अपने पिता की ही तरह दंगाइयों के संरक्षक बने रहने में कामयाब हो रहे हैं. अखिलेश कहते हैं की वो दंगा पीड़ितों को को मुआवजा देंगे. हम उनसे पूछना चाहेंगे कि आप उन लोगो को शाबाशी ह देते रहेंगे या कोई निर्णायक कदम भी उठाएंगे?
उत्तर प्रदेश कि समस्याओं के हल के लिए अखिलेश को अम्बानी के चंगुल से निकलना ही होगा. अगर ऐसा ही चलता रहा तो ये सभी संघर्ष कहीं विकराल रूप न ले लें. और मीडिया कि बात करें तो केवल दिन भर करीना सैफ, कॉमेडी शो और धरती का अंत दिखने में व्यस्त हैं. यहाँ मानवता का अंत उन्हें नहीं दिखता.
- निराश हूँ..
भावेष कुमार पाण्डेय 'विनय'