समय समय पर अम्बेडकर शब्द का अलग अलग तरीकों से उपयोग होता आया है, बहुत कम ही देखा गया है कि इसे लोगों ने गैरराजनैतिक एवं सामाजिक रूप से प्रयोग किया हो | भारत रत्न डॉ. भीम राव अम्बेडकर को मिला था लेकिन उस भारत रत्न भीम के व्यक्तित्व का प्रयोग अब अम्बेडकर के रूप में बहुरूपिये नेता करते हैं |
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Dr. B. R. Ambedkar |
पिछले कई दिनों तक अम्बेडकर के नाम का कॉपीराइट मायावती के हाथी ने ले रखा था और इस वजनदार नाम को अपने ऊपर ढोते चलता था लेकिन अब तमाम राजनैतिक पार्टियों ने मायावती से उनका एकमात्र ट्रेडमार्क भी छीन लिया |
सरकारी छुट्टी की घोषणा तो मायावती ने मुख्यमंत्री रहते ही की थी लेकिन शायद उन्हें यह नहीं पता था कि छुट्टी की जगह अगर स्कूलों में आज के दिन पढाई होती तो अम्बेडकर ज्यादा खुश होते | आखिर वो भी एक मेधावी छात्र से लेकर देश के संविधान के रचनाकार थे, हाँ वही संविधान जो विधि के छात्रों को तो क्या 40 वर्ष प्रैक्टिस कर लेने वाले अधिकतर लोगों को याद नहीं हो पाता |
राजनैतिक दल और छुटभैये नेता से लेकर बड़े कहे जाने वाले नेता तक अम्बेडकर की सही शिक्षा और सन्देश देने के बजाय उनके नाम और व्यक्तित्व का चेक भुनाने में लगे हुए दिख रहे हैं |
और दलित कही जाने वाला समुदाय यही समझकर खुश है कि हमारे भगवान की पूजा अब पंडित, ठाकुर भी करते हैं, अम्बेडकर को भगवान मान बैठे दलित वर्ग को भगवान का आशीर्वाद तो बहुत मिला लेकिन उसके साइड इफेक्ट्स को उन सामान्य वर्ग के लोगों को भुगतना पड़ा है | दलित आज भी कहता है उसे उसका हक़ चाहिए लेकिन गरीब की कौन सुने, क्या सामान्य वर्ग का गरीब किसी हक़ का हकदार नहीं है ??
आज के समाज का भगवान कौन है ? कौन इस समस्या का निवारण करेगा कि गरीब की चिंता, किसान की चिंता कैसे हो ? क्या अम्बेडकर फिर पैदा होंगे ?