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राजनीति की ही बात करता हूँ । कोई भी मध्यमवर्गीय व्यक्ति बहुत आसानी से चुनाव लड़ने के बारे में नहीं सोच सकता क्यूंकि सबसे पहले उसे खर्च होने वाली धनराशी का ख्याल आता है ।
एक जगह युवाओं को लेक्चरबाजी करते हुए मैंने उनको सलाह दिया की "राजनीति एक मौका है देश को एक सही व्यवस्था देने का", तो उनमे से एक नौजवान का तुरंत जवाब आया, "भईया राजनीति हमारे लिए नहीं बल्कि उनके लिए है जो चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए हैं या फिर जिनके घर में पहले से ही कोई नेता हो"।
ख़ास बात तो यह है की देखने को मिलता है कि जो नौजवान किसी भी पार्टी या बड़े नेता के साथ कार्यकर्ता के रूप में लगे रहकर मेहनत भी करते हैं उन्हें भी कभी मौका नहीं मिल पाता और एक समय ऐसा आता है जब उन्हें भी कुछ गलत करने के लिए मजबूर हो जाना पड़ता है जो भी भ्रष्टाचार का एक कारण है ।
अधिकतर पार्टियाँ ऐसी हैं जहां कार्यकर्ताओं को नहीं बल्कि बाहुबलियों को मौका दिया जाता है, और जब तक ऐसा चलता रहेगा हम बदलाव की उम्मीद कैसे रख सकते हैं । जो प्रत्याशी चुनाव में खड़े होने के लिए टिकट के लिए अच्छे खासे रुपये खर्च करेगा उससे यह उम्मीद कैसे रख सकते हैं की चुनाव जीतने के बाद वो सरकारी पैसे को पूरी तरह से समाज के लिए खर्च करेगा ?
व्यवस्था कुछ ऐसी होनी चाहिए कि टिकट बंटवारा योग्यता के आधार पर हो जिसमे आर्थिक योग्यता सबसे बाद में देखी जाय, चुनाव आयोग को ऐसी कड़ी व्यवस्थाएं देनी चाहिए जिस से चुनाव प्रचार में होने वाला व्यय कम से कम हो, जिससे आम आदमी भी चुनाव में लड़ने के बारे में सोच सके ।
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