Thursday, December 5, 2013

क्या हम जिम्मेदार हैं ... ??

हम अक्सर जिम्मेदारियों की बात करते हैं, आखिर जिम्मेदार कौन है ?
सड़क के लिए जिम्मेदार कौन है?
पानी के लिए जिम्मेदार कौन है ?
चाय में कम चीनी के लिए जिम्मेदार कौन है ?
भारत के मैच हारने का जिम्मेदार कौन है ?
गाड़ी का एक्सीडेंट होने का जिम्मेदार कौन है ?
और आपका चश्मा टूटने का जिम्मेदार कौन है ?.... ऐसी हज़ारों जिम्मेदारियों का जिम्मा हमारे अलावा और पूरी दुनिया ने लिया होता है .. सामान्यतः हम किसी भी चीज के जिम्मेदार नहीं होते .. क्यूंकि सिर्फ जब कुछ बेहतर हुआ हो तो हम जिम्मेदार हो सकते हैं लेकिन अगर गलत है तो हम जिम्मेदार हो ही नहीं सकते .
क्यों..?
क्योंकि हम कह रहे हैं .. जानते नहीं हो हमें .. ?

इस समय बात कर रहा हूँ नेताओं के सन्दर्भ में .. जब भी कोई भी समस्या हमारे समाज में होती है यहाँ तक कि हमें व्यक्तिगत रूप से भी कोई समस्या होती है तो अधिकतर बार वह बात यहीं आकर समाप्त होती है कि नेता जिम्मेदार है ... 

अगर किसी व्यक्ति ने कई वर्ष काम करते हुए नेता गया, या लोग उसे नेता कहने लगे तो वह अकेला जिम्मेदार पुरे समाज का हो जाता है .. उस से उम्मीदें ऐसी की जाती हैं जैसे किसी राजशाही खानदान का राजकुमार हो वह नेता .. 
किसी को भी अगर वह एक अच्छा विद्यार्थी है तो 3-4 या अधिकतम 5 वर्ष लगते हैं आईएएस या आईपीएस कि परीक्षा उत्तीर्ण होने में लेकिन एक साधारण व्यक्ति को नेता बनने में 24 घंटे काम करते हुए बीसों साल लग जाते हैं और तब भी कोई गारंटी नहीं होती है कि वह नेता बना रहेगा.. उसे कभी भी गद्दी छोडनी पड़ सकती हैं .. और वह गद्दी पर है चाहे नीचे .. उसे जनता की सभी उम्मीदों पर खरा उतरना पड़ता है .. ऐसा नहीं होता जैसे कोई अर्दली आकर कह देता है कि डीएम साहब आज छुटटी पर हैं तो कोई उन्हें परेशान नहीं करेगा | नेता को कभी भी कोई भी कहीं भी बुला सकता है .. नाली टूटने से लेकर पुल टूटने तक .. और क्लर्क से लेकर डीएम तक के काम न करने की वजह भी कहीं नहीं कहीं नेता को ही मान लिया जाता है .. 

लेकिन सवाल यह भी उठता है कि क्या अगर हम नेता को बुरा कहने में संकोच नहीं करते और उसे लगातार लगभग हर परेशानियों और दिक्कतों के लिए जिम्मेदार ठहरा देते हैं तो क्या हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती? क्या हमारा इस लोकतंत्र, इस समाज में कोई योगदान नहीं है ..? हम अपनी जिम्मेदारी को ठीक से निभा नहीं सकते या हमें सिर्फ बोलना आता है, खाना आता आता है चिल्लाना आता है लेकिन कुछ करना नहीं आता ...?? 

जब हम किसी नेता के कद की बात करते हैं तो सबसे पहले आर्थिक आकलन करते हैं, चारपहियों का आकलन करते हैं, उसके जेब में पैसे की बात करते हैं .. 

कोई भी व्यक्ति कोई कार्यक्रम का आयोजन करता है तो उसी नेता को बुलाता है जो उसे कुछ आर्थिक मदद कर सकता है .. या उसी नेता के साथ खड़ा होता है जिस से उसे कुछ आर्थिक मदद मिलती हो .. जो किसी नेता के साथ एसी गाड़ियों में घूमने को पाता है वही नेता अच्छा होता है ..

हम नेताओं का आकलन उनके व्यक्तित्व और काम करने की इच्छाशक्ति से नहीं बल्कि बल्कि उसी भौतिक सम्पन्नता से करते हैं तो हम नेताओं से उम्मीद ही क्यों रखते हैं कि वो कुछ बेहतर करेंगे ... वोट उसको पड़ता है जो पैसे बांटता है ... तो काम भी तो उसी का होगा जो पैसे देगा .. 

कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि हमें अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी ... नेता उसको मानिये जो आपके सुख दुःख में आपके साथ खड़ा हो .. ऐसा नहीं कि सिर्फ आपको कुछ आर्थिक या भौतिक लाभ पहुंचाए .. दरअसल जब हम अपने व्यक्तिगत लाभों को एक किनारे करके समाजहित के लिए उपयुक्त नेता ढूँढने लगेंगे तो विकल्प आस पास ही मिल सकते हैं .. जरुरत है आर्थिक प्रभाव क्षेत्र से बाहर निकलने की ... 

और जब इस तरह का माहौल हम दे पाने में कामयाब होंगे तो शायद निम्न वर्ग के परिवारों और मध्यम वर्ग के परिवारों के युवा भी राजनीति में अपनी भागीदारी के विषय में सोच पायेंगे .. और तब ही से स्वस्थ प्रतियोगिता जैसी चीज राजनीति में भी देखने को मिल सकती है .. नहीं तो जो हो रहा है वो तो सबके सामने है ही ...

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