Tuesday, October 30, 2012

भ्रष्ट नेता कब सुधरोगे


लगातार बिना रुके बिना थके गालियाँ देता आ रहा हूँ
कभी सुबह कि चाय के वक़्त तो कभी खाते वक़्त
कभी  आते हुए कभी जाते हुए,
गाली देने में कोई कोताही नहीं बरते
लेकिन कोई जवाब ही नहीं
अरे भाई गाली की भी कोई इज्जत होती है।
ऐसे ही थोड़े ही हम फ्री में गाली दे रहे हैं इतने दिन से
सब आपने जो किया है उसी के इनाम में दे रहे हैं
और आप कोई जवाब ही नहीं दे रहे हैं
कब तक ऐसे काम चलेगा?
कसम खाता हूँ कि बिना गाली दिए
पिछले दो साल से कभी नहीं सोया हूँ।
इतना रेगुलर याद करता हूँ तब भी कोई जवाब नहीं।
ऊधर अन्ना गरिया रहे हैं उधर कजरिया गरिया रहा है
कुछ तो शर्म करो, ऊपर से बोले कुछ नहीं 
वफादार जरुर बदल दिए लूटने के लिए 
गाली देने में जरा भी कमी नहीं किया हूँ,
मेट्रो से लेकर बस तक, घर से सड़क तक 
दोस्त से परिवार तक, दुकानदार से पहलवान तक 
सबसे बात करते वक़्त तुमको गाली जरुर देता हूँ
लेकिन फिर भी ऐ मेरे भ्रष्ट नेता कब सुधरोगे ...
कहीं ऐसा न हो कि कुछ और गड़बड़ हो जाए

-दिल से निकला 
भावेष कुमार पाण्डेय "विनय"

Monday, October 29, 2012

इरम शर्मिला के उपवास को १२ साल



इरम शर्मिला के उपवास को १२ साल पुरे होने को हैं.. सरकार का कोई कदम इसके लिए अभी तक उठता हुवा नहीं दिखा... देश का कोई भी नागरिक चाहे वो जो भी चाह रहा हो कम से कम एक बार सरकार को उस से एक बार बात तो करनी चाहिए .. 

AFSPA (Armed Forces Special Power Act 1958) के बारे में मेरा बहुत गहन अध्ययन नहीं है, लेकिन इसे लेकर जिस तरीके से कुछ लोग बहुत ही तेजी से लड़ रहे हैं जो शर्मिला के समर्थक है... उस से लगता है की शायद कहीं कुछ न कुछ तो कमी है... लेकिन भ्रष्टाचार में लिप्त इस सरकार को शायद अभी अपने कोठारिया नोटों से भरने की फुर्सत नहीं है जो वो देश के किन्ही अन्य मुद्दों पर भी विचार कर सके...

इस अधिनियम को पूरी तरह से वैध कहना भी मेरे बस की बात नहीं है क्यूंकि इसमे कुछ ऐसे प्राविधान हैं जो मानवीयता को कहीं पीछे छोड़ जाते हैं.. लकिन यह बात भी नहीं सही लगती कि AFSPA को पूरी तरह से हटा लिया जाय... लेकिन इस मुद्दे पर चर्चा कि आवश्यकता जरुर है...

इरम शर्मिला जो सन २००० से अभी तक इसी इंतज़ार में है कि सरकार से कोई आएगा जो उस से इस मुद्दे पर बात करेगा ... लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो रहा है....

ऊंचे रसूख और प्रसिद्ध हस्तियों द्वारा किए गए अनशन तो टीवी कैमरों की चकाचौंध में चमक उठते हैं, लेकिन राष्ट्रीय मीडिया ने पिछले दस बरसों से अनशन कर रहीं इरम शर्मिला चानू की कभी सुध नहीं ली।

मणिपुर की ‘लौह महिला’ यानी आयरन लेडी के नाम से पुकारी जानेवालीं इरम पिछले दस साल से मणिपुर के कुछ हिस्सों और उत्तर-पूर्वी इलाकों में सशस्त्र सेना विशेष शक्तियां अधिनियम को समाप्त करने के लिए अनशन पर बैठी हैं। इस कानून के तहत सेना और अर्धसैनिक बलों को केवल संदेह के आधार पर गोली मारने का अधिकार है। राज्य सरकार उन्हें विटामिनों और जरूरी पोषक तत्त्वों के मिश्रण पर जीवित रखता है और दिन में दो बार जबरदस्ती उनकी नाक से उन्हें वह मिश्रण चढ़ाया जाता है।

इरम कहती हैं,“मेरे लोगों पर इस तरह का अत्याचार कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह ईश्वर की इच्छा है। मैं इसे जारी रखूंगी।”

यह अलग बात है कि मांगे कितनी सही या गलत हैं... लेकिन उनपर विचार करना और बात करना बहुत आवश्यक है... इरम के करीबी बताते हैं कि वो बस इस अधिनयम में कुछ बदलाव चाहती हैं जिस से उनपर अत्याचार न हो सके....

- आशा है कुछ अच्छा होगा....
भावेष कुमार पाण्डेय "विनय"

Sunday, October 28, 2012

कुमार विश्वास : किसी मंच लायक नहीं...


इस विडियो को दिखाने का अर्थ यह बिलकुल नहीं है की मैं आपके अन्दर कुमार विश्वास के प्रति आस्था और विश्वास को कोई थेश पहुंचाना चाहता हूँ। मैं बस यह जानना चाहता हूँ की क्या अगर यह आपका चहेता कवि है तो यह हमारी आस्था पर ठेस क्यों पहुंचा रहा है?

Thursday, October 25, 2012

उत्तर प्रदेश की कमान, गैरजिम्मेदार मुखिया के हाथ

फैजाबाद दंगे में 24 अक्टूबर को जलती यह दूकान

जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बहुमत से आई और मायावती का तख्ता पलट कर जब अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाया गया तब शायद जनता में किसी को यह अंदेशा नहीं रहा होगा की वो उत्तर प्रदेश को जिस हाथ में सौंप रहे हैं है वो हाथ सुरक्षित नहीं हैं.
अखिलेश की जिस युवा छवि का हवाला देकर समाजवादी पार्टी ने जनता से वोट लिए वैसी कोई योजना आज तक अखिलेश जनता के सामने नहीं पेश कर पाए. अपनी सेक्युलर छवि को बनाये रखने वाले मुस्लिमों के मनमोहक के रूप को अपने पिता के ही पदचिन्हों पर चलते हुए उसे बनाये रखा. 
उत्तर प्रदेश में नयी सरकार आने के बाद लगातार आठवाँ साम्प्रदायिक दंगा जब फैजाबाद में हुवा तो पूरा शहर दहल गया. दुर्गा पूजा में एक महिला के साथ दुर्व्यवहार से निकला यह मुद्दा एक बड़े संघर्ष में बदलता हुवा दिखने लगा. दुर्गा माता की मूर्ति विसर्जन के लिए ले जाते वक़्त किसी मनहूस ने पत्थर फेंका और मामला यही से प्रारंभ होते हुए हिन्दू मुस्लिम संघर्ष में कब तब्दील हुवा पता ही नहीं चला. दो दर्जन से ज्यादा वाहन जले , दुकानें और घर जले और कई मौतों के बाद भी यह मामला थमा नहीं. प्रसाशन ने पहले धरा 144 लगाया और फिर गुरुवार शाम तक कर्फ्यू का ऐलान हो गया. 
यह पहला दंगा नहीं था :
एक जून को मथुरा के कोसीकला में पानी को लेकर मजहबी विवाद जिसे पांच लोग मरे और सोलह घायल हुए. 
23 जून को एक युवती के साथ हुए दुराचार के चलते साम्प्रदायिक रूप लेते हुए दंगे में 40 घर राख हो गए.
ऐसे ही 23 जुलाई को बरेली, 17 अगस्त को असम, कानपुर, लखनऊ, और 14 सितम्बर को गाज़ियाबाद में भी हिन्दू मुस्लिम साम्प्रदायिक दंगे हुए जिनमें कई जानें गयीं, घर जले, दुकानें जलीं, कर्फ्यू लगा, लेकिन निष्कर्ष के तौर पर 24 अक्टूबर को फैजाबाद का दंगा मिला. 
सेक्युलर होने का मतलब शान्ति और सौहार्द्र होता है. यह नहीं की अगर दुसरे धर्म का व्यक्ति दोषी है तो उसे सिर्फ इसलिए सजा न दी जाय क्यूंकि हमें अपनी सेक्युलर छवि बनाये रखनी है. और यह सब करते हुए अखिलेश भी अपने पिता की ही तरह दंगाइयों के संरक्षक बने रहने में कामयाब हो रहे हैं. अखिलेश कहते हैं की वो दंगा पीड़ितों को को मुआवजा देंगे. हम उनसे पूछना चाहेंगे कि आप उन लोगो को शाबाशी ह देते रहेंगे या कोई निर्णायक कदम भी उठाएंगे?
उत्तर प्रदेश कि समस्याओं के हल के लिए अखिलेश को अम्बानी के चंगुल से निकलना ही होगा. अगर ऐसा ही चलता रहा तो ये सभी संघर्ष कहीं विकराल रूप न ले लें. और मीडिया कि बात करें तो केवल दिन भर करीना सैफ, कॉमेडी शो और धरती का अंत दिखने में व्यस्त हैं. यहाँ मानवता का अंत उन्हें नहीं दिखता.
- निराश हूँ..
भावेष कुमार पाण्डेय 'विनय'

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